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Sunday, August 29, 2010

कबूतर और कबूतरी




















शाम के सुहावने मौसम में जो निकला मन को बहलाने "आदि"
हलकी - हलकी बारिश कि बुँदे आ रही थी
दूर कही ढलते सूरज कि लालिमा भी गहरा रही थी
एसे में प्रेम का एक अजब नज़ारा देखने को मिला
जहा वक़्त नहीं इन्सान के पास एक दूसरे के लिए
गजब का सहारा देखने को मिला
कबूतर और कबूतरी गुटरगू-२ करके आपस में कुछ बतिया रहे थे
शायद शायरी प्रेम भरी वो भी एक दूसरे को सुना रहे थे
एक दूसरे कि आँखों में वो इंसानों कि तरह खोये हुए थे
ऐसा लग रहा था अरमान जगे है वो, जो ना जाने जो कब के सोये हुए थे
देख के उनको ख्याल आया इंसान से तो ये कबूतर अच्छे है
कम से कम अपने प्यार के प्रति तो सच्चे है
लौट के जो आया घर को तो दिल में इक सवाल सा था
उस कबूतर कि जगह मैं क्यों नहीं बस यही मलाल सा था.............

Wednesday, August 25, 2010

सोचा जो न सपनो में आया है बनके हकीकत














सोचा न था जो कभी सपनो में भी हमने
वो आज हकीकत बनके सामने आया है
रिश्ते बनाने में क्यों लग जाते है बरसो
और हर रिश्ते को एक पल में बिखरते पाया है
रात के अँधेरे में जो अक्सर डराता है मुझको
तलाशने पर मिला वो अक्सर अपना ही साया है
एक अच्छा दोस्त बनना सिखाया है जिसने
काबिल नहीं दोस्ती के ये एहसास भी दिलाया है
क्यों उतर नहीं पाते हम किसी की उमीदो पे खरे
ये बात "आदि" आज तक समझ नहीं पाया है
कुछ अच्छे दोस्त आज भी साथ है हमारे (P)
और उमरभर रहने वाला हमारी शक्शियत पे उनका साया है
चल दिए सब अपनी - अपनी कह के यारो
आदि के दिल की बात आज तक कोन समझ पाया है
समझ पाया है समझ पाया है ....?

A Part Of Life ("किस्सा दोस्ती का हिस्सा जिन्दगी का")

यही तो हमारी दोस्ती का किस्सा है|
हमारे दोस्त ने हमसे कहा वो हमारी जिन्दगी का हिस्सा है||
हम जानते है की वो हमारे लिए क्या है|
और ये भी जानते है की वक़्त किसके लिए रुकता है||
हम आज है कल रहे न रहे|
कल के बाद हमारी दोस्ती दुनिया के लिए एक किस्सा है||
हर कोई खुद के लिए जीता है इस जहां में|
जो दुसरो के लिए जीना सिखा दे वही तो दोस्ती का रिश्ता है||
जिन्दगी के हर मोड़ पे साथ निभाया है उसने मेरा|
बन के आया वो दोस्त मेरी जिन्दगी में फ़रिश्ता है||
जिसका न कोई "आदि"  है न है कोई अन्त|
ऐसा हमारी दोस्ती का रिश्ता है||
कुछ देर याद रख के भुला देना ही तो दुनिया की रीत है|
और जो भूले से भी न भूले कभी ऐसी मेरी प्यारी "प्रीत"  है||

यही तो हमारी दोस्ती का किस्सा है ........
यही तो हमारी दोस्ती का किस्सा है ........

Tuesday, August 24, 2010

बार - बार
















कभी सुरुवात की थी हंसने हँसाने से
आज वक़्त गुज़र जाता है रूठने-मनाने में

पता नहीं ये खता हमसे क्यों होती है बार बार
हमसे मिलने पे आँखें किसी की नम क्यों होती है बार बार|
चाहा तो बहुत की न कहे कुछ भी ऐसा जो दिल पे लगे||
पर न जाने वही बाते जुबा पे क्यों होती है बार बार|
शायद हमारी किस्मत में ही नहीं दोस्ती किसी की पाना||
तभी तो धोखा हमारी किस्मत हमे यु देती है बार बार|
कहते है की हाथो की लकीरों में जो लिखा है वो होके रहेगा||
पर हमारी तो हाथो की लकीरे भी बदलती है बार बार|


ये मेरी खुद की लिखी हुई सिर्फ एक छोटी सी कविता ही नहीं
परन्तु मेरे दिल के जज्बात है जिन्हें हमने शब्दों की माला में पिरो कर
कविता में ढाला है

कई बार इन्सान करना कुछ और चाहता है पर हो कुछ और जाता है
वो पाना कुछ कुछ और चाहता है पर उसे मिलता कुछ और है शायद यही दुनिया का दस्तूर है
यदि आप लोगो को ये पसंद आये तो कृपया अपने विचार अवश्य दे